डायबिटीज और आहार के बारे में सोशल मीडिया पर मची हड़बौंग से दूर रहें
डॉक्टर अनूप मिश्रा
एक-दूसरे के साथ संवाद और सूचनाओं के आदान-प्रदान के मामले में सोशल मीडिया पूरी तरह बदल गया है। फेसबुक, स्नैपचैट आदि के अलावा व्हाट्सएप अब सही या ज्यादातर बार गलत जानकारी भेजने का सबसे तेज़ और सबसे आसान तरीका बन गया है। इन दिनों, हर डॉक्टर से मरीज पूछते हैं, डॉक्टर, मैंने व्हाट्सएप में ये पढ़ा है, क्या यह सच है?
मेरा अनुभव मुझे बताता है कि गलत जानकारी और हानिकारक सलाह तेजी से प्रसारित की जा रही है। सभी रोगियों को ऐसी किसी भी जानकारी को खुद पर लागू करने से पहले अपने चिकित्सक से पूछना चाहिए। सोशल मीडिया पर फैले ऐसे ही कुछ भ्रम जाल और उससे संबंधित वैज्ञानिक तथ्य नीचे दिए गए हैं:
अमेरिकी दिशानिर्देशों के अनुसार स्वास्थ्य पर कोलेस्ट्रॉल का कोई असर नहीं होता:
तथ्य: कोलेस्ट्रॉल, खून में पाया जाने वाला फैट यानी चर्बी है और ये मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्व का है। अगर यह धमनियों में जमा हो जाता है, तो यह उन्हें रोक देता है। हाल के आहार दिशानिर्देशों में कहा गया है कि आहार के जरिये लिए जाने वाले कोलेस्ट्रॉल की सीमा पहले की तरह सख्त नहीं होनी चाहिए (पिछली सीमा 300 एमजी रोजाना से कम थी)। इसके अनुसार एक दिन में एक अंडा बिना किसी समस्या के खा सकते हैं। लेकिन खून में कोलेस्ट्रॉल केवल आहार से नहीं बनता है बल्कि किसी भी तरह के सैचुरेटेड फैट (मक्खन, घी आदि) और उच्च कार्बोहाइड्रेट आहार से ब्लड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। इन्हीं दिशानिर्देशों की मरीज ये व्याख्या भी करते हैं कि ब्लड कोलेस्ट्रॉल का उच्च रक्त कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। ये सत्य से परे है क्योंकि ब्लड कोलेस्ट्रॉल के बढ़े स्तर से धमनियों का जाम होना और परिणामस्वरूप दिल का दौरा ये सभी आपस में जुड़े हुए हैं। कृपया ऐसे झूठे बयानों पर ध्यान न दें और अपने आहार को संतुलित और रक्त कोलेस्ट्रॉल को कम से कम रखें।
घी और नारियल का तेल जोड़ों और स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है और इसका रोजाना सेवन करना चाहिए:
तथ्य: इन दोनों तेलों में 60-80 फीसदी सैचुरेटेड फैट होता है जो हार्ट, लिवर और पैन्क्रियाज के लिए हानिकारक है। एक अच्छी तरह से किए गए अध्ययन में, घी के एक छोटे चम्मच के सेवन से दिल के दौरे के खतरे को 4-6 गुना बढ़ाकर दिखाया गया है। नारियल तेल के पक्षधरों का मानना है कि यह ’अच्छा कोलेस्ट्रॉल’ बढ़ाता है। यह कुछ हद तक सही है, लेकिन नारियल के तेल का यह गुण खराब कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने के उसके अवगुण के आगे फीका पड़ जाता है। यदि आप इन तेलों का सेवन करना चाहते हैं, तो इसे सप्ताहांत के भोजन तक सीमित रखें।
हेल्थ फार्म्स और विषाक्तता रहित आहार के साथ-साथ स्वास्थ्य और ब्लड शुगर के स्तर को रीसेट किया जा सकता है:
तथ्य: यह स्पष्ट रूप से ध्यान में रखना चाहिए कि आपके स्वास्थ्य को रिसेट करने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है। केवल लगातार प्रयास से ही स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। आप किसी हेल्थ फार्म में जाएंगे तो वहां आपको बहुत कम कैलरी वाले आहार पर रखा जाएगा है और कड़ी निगरानी में व्यायाम कराया जाएगा। इसके कारण आपका वजन, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल अच्छा खासा कम हो जाएगा मगर यह केवल तब तक चलेगा जब तक आप वहां हैं। एक बार वास्तविक दुनिया में लौटने पर यदि आप जीवनशैली नहीं बदलेंगे तो आप जल्द ही पिछले, या उससे भी खराब शरीर के आकार में वापस आ जाएंगे। तो, इससे आपका पैसा और समय दोनों चले गए और फिर भी आप बेहतर स्थिति और आकार में नहीं होंगे।
ग्लूटेन फ्री डाइट हर किसी के लिए अच्छी होती है:
तथ्य: हमारे पूर्वज बिना ज्यादा डायबिटीज और हृदय रोग झेले ग्लूटेन (गेहूं से बनी रोटियां) आहार खाकर सदियों से लंबे समय तक जीवित रहे हैं। वह आहार बुरा कैसे हो सकता है? इसे लेकर सनक (अब व्यापक रूप फैल चुकी) तब शुरू हुई जब ये देखा गया कि ग्लूटेन सेंसिटिव (शरीर के ऑटोइम्यून सिस्टम की बीमारी जिसमें ग्लूटेन के सेवन से आंतों की परत खराब हो जाती है, जिसके फलस्वरूप पेट में गड़बड़ी और दस्त होते हैं, ये स्थिति देश में 1 फीसदी लोगों से भी कम की आबादी में पाई जाती है) लोगों को दिए जाने वाले आहार से वजन और ब्लड शुगर का स्तर कम होता है। हालांकि, यही भोजन यदि ऐसे लोगों, जिनमें ग्लूटेन के प्रति संवदेनशीलता का कोई सबूत (ट्रांसग्लूटामाइनस एंटीबॉडी टेस्ट के जरिये ऑटोइम्यूनिटी की जांच) न हो, दूसरे शब्दों में कहें तो देश की शेष 99 फीसदी आबादी को दिया जाए तो ये नुकसानदेह हो सकता है। कुछ सबूत हैं कि इस तरह के ग्लूटेन फ्री आहार से भोज्य फाइबर की मात्रा में कमी आती है जो हृदय रोग से बचाता है। खास बात ये है कि ग्लूटेन फ्री आहार जो कि अब बेहद महंगा मिलता है, उसे खाने की सलाह आहार विशेषज्ञ पैसे को ध्यान में रखकर अब अंधाधुंध तरीके से मरीजों को दे रहे हैं।
कीटो आहार वजन घटाने के लिए बहुत अच्छा है और विशेष रूप से डायबिटीज के रोगियों के लिए जरूरी है:
तथ्य: इस कथन में तो सच्चाई है, लेकिन बहुत कुछ अस्पष्ट है। दरअसल कीटो आहार में बहुत कम कार्बोहाइड्रेट होता है (कुल कैलोरी का सिर्फ 10 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट से मिलता है जबकि आमतौर पर भारतीयों का भोजन ऐसा होता जहां 55-60 फीसदी कैलरी कार्बोहाइड्रेट से मिलती है) और बाकी कैलरी मुख्य रूप से वसा यानी फैट से और कुछ प्रोटीन से मिलती है। इन आहारों का पालन करना बहुत मुश्किल है। अल्पावधि में ये कम कैलोरी के कारण वजन तेजी से कम कर देते हैं और आहार में फैट की मात्रा बढ़ने और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होने के कारण शरीर द्वारा ज्यादा मात्रा में उत्पादित कीटो एसिड के कारण भूख में भी कमी आती है। शरीर की ये ‘एसिड वाली स्थिति’ वजन घटाने और चयापचय संबंधी बीमारियों के मामले में अच्छी हो सकती है और मिर्गी के ज्यादा दौरे पड़ने वाले रोगियों में ये बीमारी को नियंत्रित रख सकती है। मगर, इस तरह के आहार के दीर्घकालिक प्रभाव ज्ञात नहीं हैं और इन प्रभावों में खून में कोलेस्ट्रॉल, गुर्दे की पथरी, सांस की बदबू, ऐंठन, सिरदर्द, थकावट और हड्डियों का कमजोर होना शामिल हो सकते हैं। अंत में, यह डायबिटीज के रोगियों में हानिकारक हो सकता है, जहां 'एसिड वाली स्थिति' जल्दी बनती है (विशेष रूप से टाइप 1 डायबिटीज वाले रोगियों में, किडनी की बीमारी के साथ-साथ टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में और एसजीएलटी 2 इन्हीबीटर्स चिकित्सा के दौरान (अध्याय 16 देखें) अथवा लंबे समय तक डायबिटीज रहने के कारण) और इससे गंभीर उल्टी और बेहोशी की स्थिति आ सकती है ('केटोएसिडोसिस कोमा' अध्याय 7 देखें)।
डायबिटीज को 7-21 दिनों में खत्म किया जा सकता है:
तथ्य: इसमें कुछ हद तक सच्चाई है, लेकिन यह इतने कम समय में कभी भी नहीं किया जा सकता है। अक्सर रोगियों को आकर्षित करने या किताबें बेचने के लिए ऐसा कहा जाता है। डायबिटीज खत्म करने का प्रयास केवल टाइप 2 डायबिटीज वाले ऐसे रोगियों में किया जा सकता है, जो मोटे होते हैं और जिनमें बीमारी की अवधि कम होती है। हाल के कुछ अध्ययन बेहद उत्साहजनक हैं। अगर 10-15 किलो वजन कम हो जाए तो 80% तक लोगों में डायबिटीज खत्म हो जाता है। याद रखें, डायबिटीज को वापस लौटा देने के लिए जरूरी आहार योजना पर अमल आसान नहीं है। शुरू के 3 महीने में बेहद कम कैलरी वाला भोजन दिया जाता है और उसके बाद कैलरी बढ़ाई जाती है। इसके साथ शारीरिक व्यायाम करना होता है। ऐसे सख्त आहार और व्यायाम योजना का पालन करने के लिए व्यक्ति को बहुत अनुशासित होने की आवश्यकता है। इतना करने के 6-12 महीनों के बाद डायबिटीज को वापस लौटाया जा सकता है। सख्त आहार योजना के साथ डायबिटीज को लौटा देने का ऐसा प्रयास हमेशा एक विशेषज्ञ चिकित्सक और आहार विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए। इस तरह से डायबिटीज को लौटाने के बाद उसके फिर से लौट कर आ जाने की आशंका होती है और इस प्रयास के लंबे समय तक बने रहने के सबूत नहीं हैं। दूसरी ओर यदि डायबिटीज को बैरिएट्रिक सर्जरी के जरिये खत्म किया जाता है तो उसके फिर से लौटने की आशंका बहुत ही कम होती है।
भारत के डॉक्टर पैसे कमाने के लिए इंसुलिन दे देते हैं:
तथ्य: हाल ही में, एक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ ने बयान दिया कि भारत में डॉक्टरों द्वारा बिना लक्षण के ही मरीजों को इंसुलिन लिखने के मामले बढ़ रहे हैं। व्हाट्सएप में इस बयान को यह कहते हुए गलत तरीके से प्रसारित कर दिया गया कि भारत में कई रोगियों को इंसुलिन की आवश्यकता नहीं है और डॉक्टर इसे वित्तीय लाभ के लिए लिखते हैं। आज भी, विकसित राष्ट्रों की तुलना में, भारत में इंसुलिन का उपयोग सिर्फ एक चौथाई है। मरीजों को यह समझना चाहिए कि टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन एक जीवनरक्षक दवा है, जबकि गर्भावस्था में डायबिटीज होने पर यह रोगियों के लिए बेहद जरूरी होता है। इसी प्रकार टाइप 2 डायबिटीज के ऐसे रोगी जिन्हें हृदय रोग, ऑपरेशन, किडनी या लिवर फेल की किसी भी गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है उनमें भी यह जरूरी होता है। इसका कारण यह है कि इन स्थितियों में प्रभाव, प्रकृति और सुरक्षा की दृष्टि से इंसुलिन की तुलना में और किसी चीज पर ऐसा भरोसा नहीं किया जा सकता। यह सच है कि अधिकांश मामलों में महंगे की बजाय सस्ते इंसुलिन से काम चल सकता है जिसका असर महंगे इंसुलिन जितना ही होता है। इस मुद्दे को भारत में और अधिक सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
फल खाएं और डायबिटीज से छुटकारा पाएं:
तथ्य: फल कम मात्रा में हर दिन (1-2 प्रति दिन, टेबल 3, अध्याय 14 देखें) हर किसी के लिए, यहां तक कि डायबिटीज के रोगियों के लिए भी अच्छे हैं। लेकिन कुछ पोषाहार विशेषज्ञ ग्लास में फ्रूट जूस डालकर यह दर्शाते हैं कि ग्लूकोमीटर की रीडिंग नहीं बढ़ रही है और इसी आधार पर वे दावा करते हैं कि फल खाने से ब्लड शुगर नहीं बढ़ता है। बेचारी जनता को ये पता नहीं होता कि फलों में मौजूद फ्रुक्टोज की गणना ग्लूकोमीटर से नहीं होती है क्योंकि ग्लूकोमीटर को ग्लूकोज मापने के लिए बनाया गया है। यह एक तरह का घोटाला और छलावा है। ये भी जानें कि भारी मात्रा में फल खाने से पोटैशियम बढ़ सकता है, जिससे दिल की लय अव्यवस्थित हो सकती है और हृदय गति रुक सकती है। हमने हाल ही में ऐसे कई मामले देखे हैं।
डायबिटीज का पता लगाने के लिए ब्लड शुगर की जांच की जाती है। भारत में ब्लड शुगर के मानक स्तर को बार-बार फार्मा कंपनियों के दबाव में कम किया जा रहा है:
तथ्य: दिलचस्प बात यह है कि डायबिटीज का पता लगाने के लिए जांची जाने वाली रक्त शर्करा यानी ब्लड ग्लूकोज की सीमा को पिछली बार 21 साल पहले कम किया गया था। डायबिटीज की जांच और प्रबंधन के लिए दुनिया भर के दिशानिर्देशों की प्रक्रिया अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन और यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ स्टडी ऑफ डायबिटीज सहित कई संगठनों द्वारा निर्धारित की गई है। इन संघों में प्रसिद्ध शोधकर्ता और वैज्ञानिक शामिल होते हैं, न कि फार्मा उद्योग के लोग। कई दशकों तक एकत्र आंकड़ों के आधार पर डायबिटीज जांच की सीमा (या तो रक्त ग्लूकोज या ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन स्तर) तय की जाती है। शोधकर्ताओं द्वारा पूछा गया प्रश्न ये होता है; किसी आबादी में ब्लड शुगर की किस सीमा के बाद डायबिटीज से जुड़ी जटिलताएं सामने आती हैं। सांख्यिकीय गणनाओं का उपयोग करते हुए, यह निर्णय लिया गया कि 126 mg/dl से ऊपर ब्लड शुगर रहने से आंखों को क्षति (आमतौर पर डायबिटीज रोगियों में पाया गया) के मामले में तेजी से वृद्धि होती है। इसलिए, इस स्तर से ऊपर ब्लड शुगर वाले किसी भी व्यक्ति को डायबिटीज होने का लेबल दिया जाता है।
डायबिटीज का पता लगाने और उसके नियंत्रण के लिए ब्लड शुगर की सीमा अब बढ़ाई जा रही है:
तथ्य: दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में व्हाट्सएप पर फैला ये संदेश ऊपर के 9 नंबर के प्वाइंट के ठीक विरोधाभासी है। इस भ्रम के लिए चिकित्सा निकाय आंशिक रूप से दोषी हैं। अमेरिका के एक चिकित्सा एसोसिएशन, अमेरिकन कॉलेज ऑफ फिजिशियन (एसीपी) के एक संघ ने हाल ही में एक पेपर प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने कहा कि ग्लाइकोसाइलेटेड हीमोग्लोबिन (डायबिटीज की निगरानी के लिए किया जाने वाला मानक जांच) के लगभग 8% ( ब्लड शुगर 180 mg/dl के स्तर के बराबर) स्तर को डायबिटीज नियंत्रण दिशा में संतोषजनक माना जाना चाहिए। भारत में व्हाट्सएप संदेश ने फैला दिया कि डायबिटीज नियंत्रण के लिए 200-250 mg/dl तक ब्लड शुगर का स्तर ठीक है और डायबिटीज का पता लगाने की सीमा भी बढ़ा दी गई है जबकि एसीपी ने ऐसा कभी नहीं कहा था। एसीपी के बयान की भारत सहित सभी अंतरराष्ट्रीय एसोसिएशनों ने आलोचना की है। अच्छे डायबिटीज नियंत्रण के लिए HbA1C की सीमा को 7% (लगभग 150 mg/dl ब्लड ग्लूकोज के बराबर, बुजुर्गों और गंभीर अंग क्षति वाले मरीजों छोड़कर, अध्याय 18 देखें) रहना चाहिए और डायबिटीज के लिए खाली पेट ब्लड ग्लूकोज की सीमा 126 mg/dl से अधिक ही निर्धारित है।
सोशल मीडिया पर आने वाले कुछ संदेश आपके लिए लुभावने हो सकते हैं (जैसे कि बटर और घी का मनमाना इस्तेमाल) क्योंकि ये आपको उन चीजों का इस्तेमाल करने की आजादी देने की बात करते हैं जिनके बारे में आपके फीजिशियन ने आपको मना कर रखा है। ऐसे में इन झूठे और गलत संदेशों पर अमल से पहले अपने फीजिशियन से जरूर सलाह ले लें।
(डॉक्टर अनूप मिश्रा की किताब डायबिटीज विद डिलाइट के हिंदी संस्करण से साभार। ये किताब शीघ्र ही ब्लूम्सबरी प्रकाशन से प्रकाशित होने वाली है।)
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